दिल का दीया बुझा-बुझा-सा है
कोई हमसे जुदा-जुदा-सा है
कोई हमसे जुदा-जुदा-सा है
तनहा , उदास , खामोश हर लम्हा
मन का आँगन सूना-सूना-सा है
उसकी बेवफाई की दास्तां न पूछो
भींगे अश्क़ों में, दिल जला-जला-सा है
ख़्वाब जो हकीक़त न बन सका
हर ख़्याल का निशां मिटा-मिटा-सा है
टूटी है आरज़ू, आइनें की तरह
"अशोक" गमे-इश्क़ में डूबा-डूबा-सा है
----- शायर " अशोक "