इश्क की आग में जलने के लिए जिंदा हूँ
आग में दर्द की पलने के लिए जिंदा हूँ
है कठिन राह मगर मुझको नहीं रुकना है
मैं तो गिर गिर के भी चलने के लिए जिंदा हूँ
चाँद दिखता है मगर दूर बहुत है मुझ से
और मैं हूँ कि मचलने के लिए जिंदा हूँ
तू मुझे लाख भुला, लाख भुला दे लेकिन
तेरे कांटे मैं कुचलने के लिए जिंदा हूँ
कभी सचमुच तो कभी ख़्वाब की सूरत आ जा
अपनी आँखों को ही मलने के लिए जिंदा हूँ
----- शायर "अशोक"
21 comments:
Ashok bhai, bahot behtareen gazal hai. Ek shabd mein bolun to shandar. Par ek shikayat hai aap iske saath Apne recorded voice bhi post kijiye..kyonki is gazal ki khubsurti jyada tak hai jab koi ise gakar sunaye.
waise behtareen...yaden taaza ho gayin
बहुत ही अच्छी रचना....
bahut sunadar bhai sahab...aur apke mukh se sunane ke baad aur bhi behatarin....keep it up....dear........
Bhai padne apna sur besura ho jata hai jara iska audio ya vedio version upload kijie na mazzzzza aa jayega ......................
bahut hi umda aur behtreen rachna...
क्या क्या शेर लिख देते हो भाई, मैं तो दंग रह जाता हूँ. सोचता हूँ कुछ दिन तुम्हारी शागिर्दी में आ जाऊं
कभी सचमुच तो कभी ख़्वाब की सूरत आ जा
अपनी आँखों को ही मलने के लिए जिंदा हूँ
kabiletarif janab............shukriya
कभी सचमुच तो कभी ख़्वाब की सूरत आ जा
अपनी आँखों को ही मलने के लिए जिंदा हूँ
wah wah wah wah .....bahut hi sunder waqeyat......
बहुत खूबसूरत, आनंद आ गया
bahut khubsurat sir...
इस ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.
"aur maiN hooN k machalne ke liye zindaa hooN..."
waah
bahut khoob !
mubarakbaad qubool farmaaeiN !!
है कठिन राह मगर मुझको नहीं रुकना है
मैं तो गिर गिर के भी चलने के लिए जिंदा हूँ
वाह , बहुत खूब ...यही हौसला होना चाहिए ।
yahi to nischal prem hai jise aapne khoobsurat andaaz me apneprem may shabdo me piro diya hai.
badhai
poonam
तू मुझे लाख भुला, लाख भुला दे लेकिन
तेरे कांटे मैं कुचलने के लिए जिंदा हूँ ..
बहुत प्रबल भाव ...
सुंदर रचना ....
शुभकामनायें ...
♥
प्रिय बंधुवर शायर "अशोक" जी
नमस्ते !
सर्वत साहब ने जिस ग़ज़ल की ता'रीफ़ करदी ,… फिर उस ग़ज़ल के लिए किसी प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं रहती …
:)
वाकई बहुत ख़ूबसूरत बह्र में बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है … बधाई !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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धन्यवाद
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रूचिकर पोस्ट। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
इश्क की आग में जलने के लिए जिंदा हूँ
आग में दर्द की पलने के लिए जिंदा हूँ
है कठिन राह मगर मुझको नहीं रुकना है
मैं तो गिर गिर के भी चलने के लिए जिंदा हूँ
अच्छी संतुलित रचना। बहुत बहुत बधाई!
बहुत खूब
Very Nice
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