तेरी याद में दिल ये तड़पा है
तुमसे मिलने को तरसा है
फुक॔त है मंजर अश्कों का
इस बात को कब तू समझा है
रोया हूं बहुत मैं रातों को
जो जख्म दिया वह गहरा है
जब बान चली तेरी यादों की
तब इक शोला सा भड़का है
तेरी जिस्म से लिपटी खुशबू से
तन आज हमारा मेंहका है
कुछ कसक उठी है धड़कन में
मन आज हमारा बहका है
जाओगे कहां मुझसे बच के
हर और मेरा अब पहरा है
----- शायर 'अशोक'
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