इश्क़ की शाख पे खिलती तेरे अन्दाम की ख़ुशबू
है बादे - सबा के लब पे तेरे नाम की ख़ुशबू
मेरी तशनगी बुझा दो , दो घूंट अब पिला दो
ये आँखें हैं मये-मुहब्बत से भरी जाम की ख़ुशबू
जब कामिनी के फूल खिले, शबनम की बूंद तले
फैलती है हर तरफ मये-गुलफाम की ख़ुशबू
चलते रहो तुम राह पे , थकना न कभी हार के
कदम को चूम लेंगी इक दिन मुकाम की ख़ुशबू
ख़ुदा से हर दुआ में बस तुम्हे ही मांगते हैं हम
मेरे लब है " अशोक " तेरे नाम की ख़ुशबू
* अन्दाम -- जिस्म ,
* बादे-सबा -- सुबह की पुरवाई हवा या ठंडी हवा ,
* तशनगी -- प्यास ,
* मये-मुहब्बत -- मुहब्बत रूपी मदिरा ,
* मये-गुलफाम -- फूलों की रंग जैसी मदिरा
--------- शायर " अशोक "