Monday, April 12, 2010

मेरे लब है " अशोक " तेरे नाम की ख़ुशबू !!!

इश्क़ की शाख पे खिलती  तेरे अन्दाम की  ख़ुशबू
है  बादे - सबा  के  लब पे  तेरे    नाम   की  ख़ुशबू


मेरी  तशनगी   बुझा  दो , दो  घूंट  अब पिला  दो
ये आँखें हैं  मये-मुहब्बत से  भरी  जाम की ख़ुशबू


जब कामिनी  के फूल खिले,  शबनम  की बूंद तले
फैलती  है  हर  तरफ  मये-गुलफाम   की   ख़ुशबू


चलते  रहो तुम  राह पे , थकना  न  कभी हार के
कदम को चूम लेंगी  इक  दिन  मुकाम की ख़ुशबू


ख़ुदा से हर दुआ में  बस  तुम्हे ही  मांगते  हैं हम
मेरे  लब  है  " अशोक "   तेरे   नाम   की   ख़ुशबू


* अन्दाम -- जिस्म ,
* बादे-सबा -- सुबह की पुरवाई हवा या ठंडी हवा ,
* तशनगी -- प्यास ,
* मये-मुहब्बत -- मुहब्बत रूपी मदिरा ,
* मये-गुलफाम -- फूलों की रंग जैसी मदिरा

---------  शायर  " अशोक "