Sunday, December 18, 2011

इश्क की आग में जलने के लिए जिंदा हूँ !!!


इश्क की आग में जलने के लिए जिंदा हूँ 
आग  में  दर्द की पलने  के लिए जिंदा हूँ 


है कठिन  राह  मगर  मुझको  नहीं रुकना है 
मैं तो गिर गिर के भी चलने के लिए जिंदा हूँ 


चाँद दिखता है मगर दूर बहुत है मुझ से 
और  मैं  हूँ कि मचलने के लिए जिंदा हूँ 


तू मुझे लाख भुला, लाख भुला दे लेकिन 
तेरे  कांटे  मैं  कुचलने  के  लिए जिंदा हूँ 


कभी सचमुच तो कभी ख़्वाब की सूरत आ जा 
अपनी  आँखों  को  ही मलने  के लिए जिंदा हूँ 


----- शायर "अशोक"