दर्दे-दिल छुपाना है और मुस्कुराना है
रिश्ता दिल का दिल से है उसको तो निभाना है
बोझ पापियों का है धरती माँ के सीने पर
राम बन के प्रभु तुझको इस जहां में आना है
फट पडी है यह धरती बारिशें न होने से
रंजो-गम ही उगते हैं अब इन्हें ही खाना है
प्यार के पुजारी हैं हमको डर से क्या मतलब
प्यार का बुलावा है और हमको आना है
सो रहा है मुद्दत से जाग बेखबर अब तो
माँ का क़र्ज़ है तुझ पर अब तुझे चुकाना है
------ शायर "अशोक "