Tuesday, July 27, 2010

भींगे अश्क़ों में, दिल जला-जला-सा है !!!


दिल    का      दीया   बुझा-बुझा-सा है
कोई   हमसे            जुदा-जुदा-सा  है


तनहा , उदास ,  खामोश  हर   लम्हा 
मन   का    आँगन    सूना-सूना-सा है


उसकी  बेवफाई  की  दास्तां  न  पूछो
भींगे अश्क़ों में, दिल जला-जला-सा है


ख़्वाब   जो   हकीक़त  न   बन   सका
हर ख़्याल का निशां मिटा-मिटा-सा है


टूटी  है  आरज़ू,  आइनें  की  तरह
"अशोक" गमे-इश्क़ में डूबा-डूबा-सा है


 -----  शायर  " अशोक "