Monday, March 1, 2010

बिन तेरे ऐ सनम, होली खेलें कैसे हम....

 


बिन  तेरे   ऐ   सनम ,  होली   खेलें  कैसे   हम
 
हर रंग फींका लगता है  किस रंग  से खेलें  हम
 

 

अब  तो   दिल   भी  रोया  है ,  आँखें  हुई   है  नम  

यादों  की  सतरंगी धूप  में , मुरझा  से गए  हैं हम

 

 

बिन   तेरे  ऐ  सनम , होली   खेलें   कैसे  हम

 

अब आ जाओ  -  अब आ जाओ  

इन लम्हों कों रंगीन बना जाओ
 

 

चाहत  की   इक   रंग   अनोखी ,  

उस रंग  से  हमको  रंग  जाओ


 


अब आ जाओ - अब आ जाओ
 
अब आ जाओ - अब आ जाओ







----- शायर " अशोक "

3 comments:

abhishek kamal said...

बहत ही जबरदस्त लिखा है आपने, आपकी रचना वाकई निर्मल व सुन्दर है.
होली के इस रचना पर आपको बधाई हो, और आपके सारे दोस्तों को भी बधाई हो.

Prritiy said...

sunder rachna

shubhkamnayen

Mohit Mishra said...

bahut khubsurat hai aap ki kavita
aap ki holi ki dher sari subhkMNAYE