बिन तेरे ऐ सनम , होली खेलें कैसे हम
हर रंग फींका लगता है किस रंग से खेलें हम
अब तो दिल भी रोया है , आँखें हुई है नम
यादों की सतरंगी धूप में , मुरझा से गए हैं हम
बिन तेरे ऐ सनम , होली खेलें कैसे हम
अब आ जाओ - अब आ जाओ
इन लम्हों कों रंगीन बना जाओ
चाहत की इक रंग अनोखी ,
उस रंग से हमको रंग जाओ
अब आ जाओ - अब आ जाओ
अब आ जाओ - अब आ जाओ
3 comments:
बहत ही जबरदस्त लिखा है आपने, आपकी रचना वाकई निर्मल व सुन्दर है.
होली के इस रचना पर आपको बधाई हो, और आपके सारे दोस्तों को भी बधाई हो.
sunder rachna
shubhkamnayen
bahut khubsurat hai aap ki kavita
aap ki holi ki dher sari subhkMNAYE
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