Wednesday, June 23, 2010

एक नन्हा सा दिया माँ ने जला रक्खा है !!!


एक चेहरा है जिसे दिल से लगा रक्खा है
क्या कहूं इश्क में क्या हाल बना रक्खा है



क़ैद में घुटती हुई जीस्त से बेहतर है मौत
डर के जीने में भला ख़ाक मज़ा रक्खा है



राह तकते तेरी आँखों में नमी भी भर ली
और बिस्तर पे गमे-इश्क सजा रक्खा है



लूट कर मेरा सुकूं, गम मुझे देने वाले
तेरा हर जख्म कलेजे से लगा रक्खा है



किस कफस में है ये जुर्रत जो मुझे क़ैद करे
मैं ने हर शाख पे अब खुद को बिठा रक्खा है



जीत जाऊँगा अंधेरों से, यकीं है ये 'अशोक'
एक नन्हा सा दिया माँ ने जला रक्खा है 


*क़फ़स -- पिंजरा


-------  शायर  " अशोक "

42 comments:

गनेश जी बागी said...

भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है

अशोक जी बहुत ही उम्द्दा ग़ज़ल कहा है आपने, खुदा ने आप को उबुरे-ए-कलम बक्शी है आप बहुत ही अच्छा करे यही दुआ है, इस खूबसूरत अल्फाजो से सजी ग़ज़ल के लिये बधाई क़ुबूल फरमाये,धन्यवाद,

Ganesh Jee "Bagi"
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vinodbissa said...

दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰॰॰ बहुत शानदार लिखा है आपने ॰॰॰ भावनाओं का अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰ अशोक जी शुभकामनायें

Divya Narmada said...

aapkee yah rachna pahlae se kafee behtar hai... aise hee koshish karte rahiye. shubhkamnayen...

श्रद्धा जैन said...

भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है


waah bahut khoo kaha hai........

masoomshayer said...

bahut achha likhaa hai

Munna Paswan said...

namaskar ashok jee , bahut sundar rachna भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है
.........shukriya aapko

हरकीरत ' हीर' said...

ऐसा कोई क़फ़स नहीं जो कैद कर ले मुझको
हवाओं की हर शाख़ पे खुद को बिठा रक्खा है

वाह ...क्या बात है .....!!

ज़िन्दगी की बाज़ी, मैं जीत कर लौटूँगा "अशोक"
माँ ने दुआओं का दीया राहों में जला रक्खा है

बहुत खूब......!!

अशोक जी इतने दिन कहाँ रहे ....?
एक से बढ़कर एक नायब तोहफे लाये हैं आज तो ......

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

ऐसा कोई क़फ़स नहीं जो कैद कर ले मुझको
हवाओं की हर शाख़ पे खुद को बिठा रक्खा है..wah ustad dil nichod kar rakh diya aapne ...bahut umda gazal..nikli hai dilke kone se....

Dheerendra Singh said...

Bahut bahut sundar....wah

श्यामल सुमन said...

भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है

यूँ तो हर शेर का अपना सुगंध है लेकिन उक्त शेर बहुत पसन्द आया अशोक जी। शुभकामनाएं।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Anonymous said...

बहुत ही अच्छा गज़ल प्रस्तुत किया है आप ने!!
एकदम दिल को छु लेने वाली बात कही है..
लगता है सचमुच -'दिल की कलम से लिखा है'...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही शानदार रचना!

Anonymous said...

ek dum mast yar
भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है
aur

ज़िन्दगी की बाज़ी, मैं जीत कर लौटूँगा "अशोक"
माँ ने दुआओं का दीया राहों में जला रक्खा है



ye line kya khub likhi hai dil ko chu gyi........ek dum solid.......

hemant kumar said...

ek dum mast yar
भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है
aur

ज़िन्दगी की बाज़ी, मैं जीत कर लौटूँगा "अशोक"
माँ ने दुआओं का दीया राहों में जला रक्खा है



ye line kya khub likhi hai dil ko chu gyi........ek dum solid.......

गोविन्द मिश्र "अजीब" said...

लूट कर सुकूं मेरा , गमे - इश्क़ देने वाले
तेरे हर सितम को हमने दिल से लगा रक्खा है


ऐसा कोई क़फ़स नहीं जो कैद कर ले मुझको
हवाओं की हर शाख़ पे खुद को बिठा रक्खा है


ज़िन्दगी की बाज़ी, मैं जीत कर लौटूँगा "अशोक"
माँ ने दुआओं का दीया राहों में जला रक्खा है

ashok ji bahut umda lekhan

sachitr kiya apni kalm rupi lekhni se .. Subhkamnayein !!!

प्रसून दीक्षित 'अंकुर' said...

1. वो एक चेहरा हमने जिसे दिल से लगा रक्खा है
क्या कहूँ कि इश्क़ में क्या हाल बना रक्खा है

2. लूट कर सुकूं मेरा , गमे - इश्क़ देने वाले
तेरे हर सितम को हमने दिल से लगा रक्खा है

___________________________________

बहुत ही सुन्दर रचना !
अकथनियता का आभास !

Avinash Chandra said...

badhai ho janab...behad umda hai har ek sher.

Crazy Codes said...

bahut khoob...

राजीव तनेजा said...

ज़िन्दगी की बाज़ी, मैं जीत कर लौटूँगा "अशोक"
माँ ने दुआओं का दीया राहों में जला रक्खा है...

बहुत बढ़िया

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

Ashok ji aapke is rachna ke har panktiyon ne dil ko chhu liya ........
aise hi rachnayen likhte rahen ...

Anonymous said...

वो एक चेहरा हमने जिसे दिल से लगा रक्खा है !!!हर बार की तरह बेहद खुबसूरत और दिल को छूने वाली भावनाएं ! शायर को सलाम !

Parul kanani said...

har pankti wah ke kabil hai :)

s.dawange said...

भाई जिन्दगीमे हर नही मानना............................... ।

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

bhai...S.DAWANGE JI, itni jaldibaazi kaisi , comment likhker padh to lete ki kya likha hai....
blog pe aane ke liye, shukriya..

Randhir Singh Suman said...

ऐसा कोई क़फ़स नहीं जो कैद कर ले मुझको
हवाओं की हर शाख़ पे खुद को बिठा रक्खा है
nice

Himanshu Mohan said...

बहुत अच्छे! लिखते रहिए।

पूनम श्रीवास्तव said...

ashok ji bahut hi lajwaab gajal.maaki duaaon ka asar kbhi bhi saath nahi chhodta. aur ummido par hi duniya kayam hai.sundar prastuti karan.
poonam

अंजना said...

ऐसा कोई क़फ़स नहीं जो कैद कर ले मुझको
हवाओं की हर शाख़ पे खुद को बिठा रक्खा है


बहुत ही सुन्दर रचना |

सुधीर राघव said...

दिल को छूने वाली भावनाएं

jyotipandey said...

reale very good ,maine der se padha par padha is bat ki khushi hai.thanks

vandana gupta said...

लगता है बहुत देर हो गयी आते आते
जली चिता को अब कैसे जलायें

मेरे पास तो लफ़्ज़ ही नही बचे तारीफ़ को…………………पहली ही गज़ल ने निशब्द कर दिया और सोच रही हूं अब तक इतने उम्दा फ़नकार से दूर कैसे रही।

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

आप सभी का आभार ,
यूँ ही अपना स्नेह बनाये
रखियेगा || शुक्रिया !!

Nirbhay Jain said...

भर आये हैं अश्क़ नैनों में, तेरी राह तकते - तकते
शबे-फ़िराक़ के बिस्तर पे गमे-इश्क़ सजा रक्खा है

बहुत ही नपे तुले शब्दों से भाव विभोर कर दिया अपने..
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया...कल थोड़ी व्यस्तता थी इसलिए टिपण्णी नहीं कर पाया
आप युही लिखते रहे इसी आशा के साथ ...

Akshitaa (Pakhi) said...

अच्छा लिखा आपने...बधाई.
***********************

'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

पवन धीमान said...

ऐसा कोई क़फ़स नहीं जो कैद कर ले मुझको
हवाओं की हर शाख़ पे खुद को बिठा रक्खा है.... बहुत ही शानदार

Anonymous said...

Badiya likha hai. Keep it up.

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

**Anonymous Users** ....
आपसे अनुरोध है ,
आप अपना नाम अंकित कर दें ...
अपने बारे में कुछ लिख दें ...
वर्ना पता नहीं चल पता ,
टिपण्णी किसने की है ?? ....
ब्लॉग पर आने के लिए , शुक्रिया !!!

VIVEK VK JAIN said...

nice........

www.anaugustborn.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

कैद में घुटती ज़िन्दगी से मौत बेहतर, दोस्तों
डर-डर के जीने में क्या ख़ाक मज़ा रक्खा है
बहुत खूब ... लाजवाब ग़ज़ल है ... ये शेर तो ख़ास पसंद आया ...

संजय भास्‍कर said...

दिल को छूती हैं पंक्तियां

विभूति" said...

जीत जाऊँगा अंधेरों से, यकीं है ये 'अशोक'
एक नन्हा सा दिया माँ ने जला रक्खा है.. hamne apka blog pahli baar pada bhut accha likhte hai aap... sabdo ka chayan bhut khubsurti k sath karte hai aap...

विभूति" said...
This comment has been removed by the author.